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मंगलवार, 31 मई 2016

मेरी मोहब्बत की दीवानगी ...

तेरे पुकारने और मेरे आने के बीच
देख सदियाँ जाने कहाँ बह गयीं
कोई पुल बचा ही नहीं
जिस पर पाँव रख तुझ तक पहुँच पाती मेरी सदा

जानते हो
यहाँ हवाएं नहीं करतीं सरगोशी
जो भेज देती पैगाम उनके परों पर लिख

सुनो
शब्दातीत हो चुकी है हमारी मोहब्बत
फिर किस भाषा में व्यक्त करूँ

मगर
तुमने दी है सदा
पुकारा है मोहब्बत को
दो बोल सुनने की ख्वाहिश से
देख बिना माध्यम के भी पहुंची है मुझ तक पुकार
तो क्या तुझ तक नहीं पहुँचेगा मेरा पैगाम


तेरी ख्वाहिश के सदके
मैंने मोहब्बत को आवाज़ दे दी
क्या पहुंची तुम तक ?
देख फिजाओं में नर्तन करते संगीत की गुंजार
बस इसी में तो हूँ मैं
तू कहे जा
मैं सुन रही हूँ
क्यूंकि
मोहब्बत किसी प्यास की मोहताज नहीं होती ...

सुन रहे हो न  .. . बतिया रहे हो न .......ओ मेरे दरवेश

तेरी कोई इच्छा अधूरी रह जाए ........क्या संभव है ?

बस यही है मेरी मोहब्बत की दीवानगी ...

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