पेज

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लॉग से कोई भी पोस्ट कहीं न लगाई जाये और न ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जाये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

तुम्हारे होने ना होने के अंतराल में

सुनो 
तुम्हारे होने ना होने के अंतराल में 
ज़िन्दगी , लम्हे , पल 
यदि बसर हो जाते 
सच कहती हूँ 
तुम इतनी शिद्दत से 
ना फिर याद आते 
क्या मिला तुम्हें 
मुझसे मेरी ज़िन्दगी, लम्हे , पल चुराकर 
मैं तो उनमे भी नहीं होती 
जानते हो ना 
अपनी चाहत की आखिरी किश्त चुकता करने को 
बटोर रही हूँ ख्वाबों की आखिरी दस्तकें 
क्योंकि 
सिर्फ तुम ही तुम तो हो 
मेरे ह्रदय की पंखुड़ी पर 
टप टप करती बूँद का मधुर संगीत 
उसमे "मैं" कहाँ ?
फिर क्यों चुराया तुमने मुझसे 
मेरी चाहतों की बरखा की बूंदों को 
उससे झरते संगीत को ?
और अब मैं खड़ी  हूँ 
मन के पनघट पर 
रीती गगरिया लेकर 
तुम्हारे होने न होने के अंतराल के बीच का शून्य बनकर 

13 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Bahut achi kavita hain..........

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन कविता की प्रस्तुति.

shikha varshney ने कहा…

शून्य से ज्यादा अहम क्या होगा.
सुन्दर.

इमरान अंसारी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर......हमें तो ताश का कोई भी खेल नहीं आता ।

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बाह सुन्दर ,सरस रचना . बधाई .

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बेहतरीन


सादर

वाणी गीत ने कहा…

शून्य जिसमे जुड़ जाए ,कीमत बढ़ा देता है !
बहुत खूब , सरस !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये शून्य खुद की पाटना पढेगा ...
होने ओर न होने का अंतराल कभी नहीं भरता ..

somali ने कहा…

bahut sundar mam....

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

मनभावन शानदार रचना ...शून्य को कम मत आंकिये

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बढिया
बहुत सुंदर

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पल भर को बिसरायी भर थी याद तुम्हारी,
प्राण कण्ठ तक ले आयी थी याद तुम्हारी,
चाहा कुछ एकान्त रहूँ पर फैल गयी वह,
हृदय-कक्ष में सन्नाटे सी याद तुम्हारी।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुंदर भाव ...