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शनिवार, 2 मार्च 2013

देख धुआँ धुआँ अक्स मेरा




देख धुआँ धुआँ अक्स मेरा

आज आईने ने दिखा दिया
जो मुझमे से निकल गया
वो सब सच दिखा दिया
अब बचा है क्या मुझमे
गर तू पता लगा सके
तो मुझे भी आ बता जाना
ना पंख रहे ना परवाज़ रही
ना धरती रही ना आकाश रहा
मेरा रौशनी मे नहाता वज़ूद
देख कैसा धुआं धुआँ हुआ
अब मै ना मै रही
एक धुयें की लकीर बन गयी
क्या फ़र्क पडा बता ज़रा
तेरी महफ़िल तो रौशन रही
ना राख हुयी ना बुझ सकी
मै खुद मे ही सिमट गयी
फिर भी देख तेरा कूंचा
ना मुझसे छोडा गया
अब करम है या सितम है ये
वक्त ने तो कर दिया
जो तू मुझमे बस गया
मुझमे मेरा ना कुछ रहा
तभी तो देख वजूद मेरा
आईना सा बन गया
चाहे धुआँ धुआँ ही क्यों ना हुआ
कभी वक्त मिले तो आ जाना
एक नज़र घुमा जाना
जो तू नज़र ना आये तो
मेरी पहचान बता जाना

धुयें की धुंध से बाहर आने की  रवायतें जानी हैं कभी …………

12 टिप्‍पणियां:

shalini rastogi ने कहा…

बहुत सुन्दर वंदना जी ... इश्क में खुद को जला के धुंआ कर दिया ... सुन्दर भाव!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर भावप्रणव प्रस्तुति!

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर भाव लिए सार्थक प्रस्तुति.

Unknown ने कहा…

बहुत भाव-पूर्ण रचना है ...."ना राख हुई ना बुझ सकी".....ये पंक्तियाँ विशेषरूप से मार्मिक लगीं .
मेरे ब्लॉग पर भी कृपया एक नज़र डालें ...पता छोड़ रही हूँ ...
http://shikhagupta83.blogspot.in/

yashoda Agrawal ने कहा…

एक नज़र घुमा जाना
जो तू नज़र ना आये तो
मेरी पहचान बता जाना
उत्तम रचना
साधुवाद
सादर

shikha varshney ने कहा…

चित्र के साथ गज़ब का प्रभाव छोड़ रहे हैं शब्द.

Dinesh pareek ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है ......
सादर , आपकी बहतरीन प्रस्तुती

आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?

ये कैसी मोहब्बत है

travel ufo ने कहा…

सुंदर और सरल शब्दो में

Kailash Sharma ने कहा…

मेरा रौशनी मे नहाता वज़ूद
देख कैसा धुआं धुआँ हुआ
अब मै ना मै रही
एक धुयें की लकीर बन गयी

....वाह...बहुत भावमयी सशक्त अभिव्यक्ति...

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

एहसासों से से लबरेज...खूबसूरत शब्द.

Udan Tashtari ने कहा…

क्या बात है जी!!

सदा ने कहा…

भावमय करते शब्‍दों का संगम ... अनुपम प्रस्‍तुति

आभार