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शुक्रवार, 20 मई 2011

आखिर पतझड मे कब पेड हरे हुये हैं?

क्या हुआ जो भुला दिया तुमने
क्या हुआ जो कोई राह नही मुडती
मेरे चौबारे तक
क्या हुआ जो कंक्रीट का जंगल
बन गया दिल मेरा
क्या हुआ जो आस का सावन
नही बरसा मेरे ख्वाबों पर
क्या हुआ जो हवा का रुख
बदल गया
नही छुआ तुम्हारा दामन उसने
नही पहुंचाई कोई सदा तुम तक
क्या हुआ जो तेरी महक
फ़िज़ाँ मे नही लहराई
कोई फ़र्क नही पडता
कुछ फ़िज़ाओं पर
मौसम का असर नही होता
और जहाँ पतझड उम्र के साथ
ठहर गया हो
वहाँ कोई फ़र्क नही पडता
आखिर पतझड मे कब पेड हरे हुये हैं?

39 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत बढ़िया.

सादर

Rakesh Kumar ने कहा…

आप इतना भावपूर्ण लिख कर दिल को क्यूँ लुभा लेतीं
हैं वंदना जी ?
आप फिर कहेंगीं मुझे नहीं पता कैसे सब ये लिखा जाता है.पर मैं तो कहूँगा आप तन्मय हो रहीं हैं
उनमें.इसीलिए तो 'हवा का रुख बदल गया है'

रश्मि प्रभा... ने कहा…

और जहाँ पतझड उम्र के साथ
ठहर गया हो
वहाँ कोई फ़र्क नही पडता
आखिर पतझड मे कब पेड हरे हुये हैं?... marm ko kuredte ehsaas

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

और जहाँ पतझड उम्र के साथ
ठहर गया हो
वहाँ कोई फ़र्क नही पडता

भावुक से ख़याल से रची अच्छी रचना

समयचक्र ने कहा…

बहुत ही भावुक रचना नए अंदाज में .... बधाई .

आशुतोष की कलम ने कहा…

इन पेड़ों की छाव में जलाता है बदन..
चलो इस दरख्त से कहीं दूर चलते हैं.....

Kailash Sharma ने कहा…

और जहाँ पतझड उम्र के साथ
ठहर गया हो
वहाँ कोई फ़र्क नही पडता
आखिर पतझड मे कब पेड हरे हुये हैं?....

बहुत सच कहा है. बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार

Brijendra Singh ने कहा…

किसी ख्याल को कैसे मुकम्मल अंजाम दिया जाए..कोई आप से सीखे..बेहद खूबसूरत रचना..

Anita ने कहा…

सुंदर भावयुक्त कविता, लेकिन पतझड़ के बाद वसंत आता ही है...

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

पतझड़ का विम्ब बढ़िया है.. एक भावुक कर देने वाली कविता... बहुत बढ़िया.. बहुत उम्दा...

मनोज कुमार ने कहा…

भावनाओं का बहाव है ऐसा कि हम सब उसमें बह जाते हैं।

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

पत्तों से लदे ये दरख़्त भी अब छाँव नहीं देते , इससे तो अच्छे पतझड़ के दरख़्त हैं उनमें कम से कम पात तो नहीं होते. फिर उनसे कोई शिकायत भी नहीं होती.

एक भावुक होकर लिखी रचना सबको भावुक कर गयी.
--

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

पत्तों से लदे ये दरख़्त भी अब छाँव नहीं देते , इससे तो अच्छे पतझड़ के दरख़्त हैं उनमें कम से कम पात तो नहीं होते. फिर उनसे कोई शिकायत भी नहीं होती.

एक भावुक होकर लिखी रचना सबको भावुक कर गयी.
--

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

कोई फर्क नही पड़ता
कुछ फिजाओं पर मोसम का असर नही होता

आखिर पतझड मे कब पेड हरे हुये हैं ?
बहुत खूब पंक्तियाँ है ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गहन भावों से भरी।

बेनामी ने कहा…

how true......beautiful

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (21.05.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत ही भावप्रणव रचना!
पतझड़ में पेड़ तो हरे नहीं होते मगर
पतझड़ वसन्त का सन्देश अवश्य लाता है!

Sunil Kumar ने कहा…

और जहाँ पतझड उम्र के साथ
ठहर गया हो
वहाँ कोई फ़र्क नही पडता
खुबसूरत अहसास , बधाई

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर शेली सुन्दर भावनाए क्या कहे शब्द नही है तारीफ के लिए .

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι ने कहा…

और जहां पतझड़ उम्र के साथ ठहर गया हो,
वहां कोई फ़र्क नहीं पड़ता, बहुत ख़ूब बधाई।

rashmi ravija ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण रचना...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

और जहाँ पतझड उम्र के साथ
ठहर गया हो
वहाँ कोई फ़र्क नही पडता
आखिर पतझड मे कब पेड हरे हुये हैं?...

बहुत सुंदर....हृदयस्पर्शी भाव

amit kumar srivastava ने कहा…

दर्द को भी निखारना कोई आपसे सीखे ।

बहुत खूब ।

विभूति" ने कहा…

suchaai kahti hui panktiya hai...

36solutions ने कहा…

ठहरे पतझड़ के बाद हरियाली के दिन का स्‍वप्‍न हकीकत नहीं होता. सुन्‍दर कविता.

Unknown ने कहा…

बेहद भावपूर्ण, खूबसूरत रचना..

M VERMA ने कहा…

और जहाँ पतझड उम्र के साथ
ठहर गया हो
वहाँ कोई फ़र्क नही पडता
पतझड़ कब ठहरता है यह तो संकेत है नए पत्तों के आगमन का ....

नश्तरे एहसास ......... ने कहा…

बहुत ही भाव पूर्ण रचना........बहुत खूब लिखा है आपने हर पंक्ति दिल को छु रही है!!

बाबुषा ने कहा…

एकदम वंदना जी की स्टाइल की भावुक सी कविता.

मदन शर्मा ने कहा…

और जहाँ पतझड उम्र के साथ
ठहर गया हो
वहाँ कोई फ़र्क नही पडता
आखिर पतझड मे कब पेड हरे हुये हैं?...

बहुत सुंदर....हृदयस्पर्शी भाव

मदन शर्मा ने कहा…

और जहाँ पतझड उम्र के साथ
ठहर गया हो
वहाँ कोई फ़र्क नही पडता
आखिर पतझड मे कब पेड हरे हुये हैं?...

बहुत सुंदर....हृदयस्पर्शी भाव

मदन शर्मा ने कहा…

और जहाँ पतझड उम्र के साथ
ठहर गया हो
वहाँ कोई फ़र्क नही पडता
आखिर पतझड मे कब पेड हरे हुये हैं?...

बहुत सुंदर....हृदयस्पर्शी भाव

बेनामी ने कहा…

सुन्दर भावों से भरी पोस्ट |

Asha Lata Saxena ने कहा…

बहुत मन भावन रचना |दिल को छू गयी |
बहुत बहुत बधाई |
आशा

लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल " ने कहा…

saperem abhivaadan
bahut sundar rachanaa
sadar
laxmi narayan lahare

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत भावुक हैं आज के एहसास ...!!
और बहुत ही सुंदर कविता है ..
अब बसंत की बाट जोहता मन ...!!

Maheshwari kaneri ने कहा…

और जहाँ पतझड उम्र के साथ
ठहर गया हो
वहाँ कोई फ़र्क नही पडता
आखिर पतझड मे कब पेड हरे हुये हैं?...
बहुत ही भावुक रचना .....आभार