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गुरुवार, 24 मार्च 2011

ए .........एक बार पुकार लो ना

आज मोहब्बत चरम पर है शायद
तभी तुम , तुम्हारी याद , तुम्हारी परछाईं
सभी जान लेने पर तुली हैं
ए .........एक बार पुकार लो ना

मेरे मन के रेगिस्तान में
जब से तुम्हारे प्रेम का
फूल खिला है सनम
अब कैक्टस भी
गुलाब नज़र आता है

आज दिल काबू में नहीं
ये कैसा जादू कर दिया
मुझे मुझसे ही जुदा कर दिया
हाय ये क्या सितम कर दिया

आह! आज ये क्या हो गया है
क्या मौसम जवाँ हो गया है
या दिल बेकाबू हो गया है
जो तुम इतना याद आ रहे हो
ए .........एक बार पुकार लो ना 

शायद दिल कुछ सम्हल जाये
शायद अरमान कुछ निकल जायें
शायद इक हसरत ही निकल जाये
दिल की जुस्तजू परवान चढ जाये
बस ………एक बार पुकार लो ना

सोमवार, 21 मार्च 2011

उदास हूँ मैं………

अब न तुम्हारी याद
तुम्हारा ख्याल
और ना ही तुम
कोई नही होता
आस पास मगर
फिर भी
उदास हूँ मैं………


ना कोई काँटा
ना कोई टीस
ना कोई चाहत
अब पांव पसारती है
फिर भी
उदास हूँ मैं………


न कोई सपना
आंखो मे सजता है
ना कोई अरमान
दिल मे जगता है
ना कोई प्रीत
सहलाती है
मगर
फिर भी
उदास हूँ मैं………

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

सजन से मिलन का एक रंग

होली के रंग… मन में उमंग… दिल में तरंग……
सजन से मिलन का एक रंग



घूंघट की ओट में
सकुचाई लजाई
सजनिया
पी का रास्ता
निहार रही
आँखों में भर के
प्रीत के बादल
सजन का रास्ता
निहार रही
नैनों में छाये
रंग हजार
तन मन में
उठती प्रीत की
बयार
सब से है
छुपाय रही
कब आवेंगे
मोरे सांवरिया
प्रेम के रंगों की
लेके फुहरिया
नैन मूंदे
सोच रही थी
सपनो में उनके
खो रही थी
सुध बुध अपनी
भूल गयी थी
तभी आये
चुपके से सांवरिया
ले के हाथ में
रंगों की पुडिया
सजनिया पर
रंग बरसा गए
प्रेम रंग में
नहला गए
प्रीत का रंग
चढ़ा गए
हर्षित हो गयी
अब तो सजनिया
रंगों में खुद भी
डूब गई बावरिया
साजन ने पकड़ी
नाजुक कलइयाँ
रंग में भिगो दी
सारी चुनरिया
बाहो मे भर लीन्ही
सजनिया
कपोल पर अंकित
कर दीन्ही निशानियां
लाज को ताक पर
रख गये सांवरिया
होरी के बहाने
कर गए
छेड़छाड़ सांवरिया
ऐसी कर गये
ठिठोली सजनवा
प्रीत को कर गये
लाल सांवरिया


सोमवार, 14 मार्च 2011

सोन चिरैया

मैं और मेरा आकाश
कितना विस्तृत
कितनी उन्मुक्त उड़ान
पवन के पंखों पर
उडान भरती
मेरी आकांक्षाएं
बादलों पर तैरती
किलोल करती
मेरी छोटी छोटी
कनक समान
इच्छाएं
विचर रही थीं
आसमां छू रही थीं
पुष्पित
पल्लवित
उल्लसित
हो रही थीं
खुश थी मैं
अपने जीवन से
आहा ! अद्भुत है
मेरा जीवन
गुमान करने लगी थी
ना जाने कब
कैसे , कहाँ से
एक काला साया
गहराया
और मुझे
मेरी स्वतंत्रता को
मेरे वजूद को
पिंजरबद्ध कर गया
चलो स्वतंत्रता पर
पहरे लगे होते
मगर मेरी चाहतों
मेरी सोच
मेरी आत्मा
को तो
लहूलुहान ना
किया होता
उस पर तो
ना वार किया होता
आज ना मैं
उड़ पाती हूँ
ना सोच पाती हूँ
हर जगह
सोने  की सलाखों में
जंजीरों से जकड़ी
मेरी भावनाएं हैं
मेरी आकांक्षाएं हैं
हाँ , मैं वो
सोन चिरैया हूँ
जो सोने के पिंजरे
में रहती हूँ
मगर बंधनमुक्त
ना हो पाती हूँ

गुरुवार, 10 मार्च 2011

इक प्यास कायम रखता है

अरे क्या करेंगे जानकर
कितना जानेगे किसी को
क्या पूरा जान सकते हैं ?
कभी नहीं ..........
तो अच्छा है
confuse ही रहें
कुछ तो बचा रहेगा
अन्जाना सा
और अनजानेपन की
सौंधी मिटटी में  भी
बहुत से ख्वाब
छुपे होते हैं
और उन ख्वाबों की
धरती बहुत नम होती है
ऊंगली से छुयो तो भी
निशाँ पड़ जाते हैं
तो ऐसे में कहो
क्या करेंगे किसी को
पूरा जानकर
फिर इस अनजानेपन की
महक कैसे ले पाएंगे
रहने दो कुछ तो
अधूरा सा
अधूरापन भी
इक प्यास कायम रखता है

मंगलवार, 8 मार्च 2011

आज तो बेटी कहती है……

आज तो बेटी कहती है…………
बाबा वर तुम मत ढूँढना
मै जिसे लाऊँ बस
उसे स्वीकार कर लेना
पैसे ,स्टेट्स ,रूप बिना
क्या कोई स्थान मिलता है
जैसे कन्या के पिता की
जायदाद देखकर उसे
स्वीकारा जाता है
ऐसे ही
अब तो वर का सिर्फ़
बैंक बैलेंस से चयन होता है
गर खुद ढूँढ कर लाओ तो
याद ये कर लेना
बेटी हूँ कोई ढोर डंगर नही
किसी के गले भी मढ दोगे
अब तो जो मेरे मन को भायेगा
वो ही जीवनसाथी बन पायेगा
जरूरत नही किसी से कहने की
किसी की सुनने की
बेटी हूँ तो क्या हुआ
किसी से कम नही
जो जो शर्त वो बतलाये
वो ही तुम भी दोहरा देना
गर तुम ना कह पाओ तो
मुझको बतला देना
जरूरत नही किसी के आगे
सिर झुकाने की
कोई बोझ नही हूं तुम पर
गर्व से सिर ऊँचा कर लेना
जब भी बेटी का कोई नाम ले
कह देना --हाँ बेटी का बाप हूँ
अब दान नही देता हूँ
बराबर का रिश्ता करता हूँ
जो भी आकाँक्षाये तुम्हारी है
उनसे कम मेरी बेटी की भी नही
गर बराबर का मिले कोई
तभी बात तुम कर लेना
वरना बाबा तुम ही
रिश्ता तोड देना
मानसिकता को अब
बदलना होगा
नयी पहल करनी होगी
गर तुम ना कर पाओ तो
मुझे बतला देना
मै स्वंय कदम उठा लूँगी
मगर अब ना किसी के आगे
किसी बात पर सर तुम्हारा
न झुकने दूँगी
मै भी वो सब देखूँगी
वो सब चाहूँगी
जो हर बेटे वाला चाहता है
जो गुण अवगुण
रोक टोक लडकी पर
लगाये जाते हैं
मै भी वैसा ही कर दूँगी
मगर अब न तुम्हारी पगडी
किसी के पैरो मे रखने दूँगी
बाबा वर तुम मत ढूँढना
मानसिकता को अब बदलना होगा
नया इतिहास रचना होगा
वक्त के सीने पर
स्वर्णाक्षरो से लिखना होगा
बेटी किसी से कम नही
ये तुम्हे भी समझना होगा

दुनिया को भी समझाना होगा
दस्तूरों को बदलना होगा
रूढियों को तोडना होगा
तभी सैलाब आयेगा
तभी इंकलाब आयेगा
फिर ना कोई बेटी 
दहेज की बलि चढ पायेगी
ना ही परम्पराओं के नाम पर
कुर्बान की जायेगी
शायद भ्रूण हत्यायें 
भी रुक जायेंगी
और फिर
नयी आशायें झिलमिलायेंगी
इक नये युग का अवतार होगा
और बेटियाँ माथे का 
तिलक बन जायेंगी

गुरुवार, 3 मार्च 2011

पता नहीं क्यों…………

पता नहीं क्यों
बसते हो तुम मुझमे
कितनी बार चाहा
तोड़ दूँ चाहत का भरम
हर बार तुम्हारी चाहत
मुझे कमजोर कर गयी

पता नहीं क्यों

इतना चाहते हो मुझे
कितनी बार चाहा
भूल जाओ तुम मुझे
हर बार तुम्हारा प्यार
मंजिल से मिला गया

पता नहीं क्यों

याद करते हो मुझे
कितनी बार चाहा
लगा दूँ ताला 

दिल के दरवाज़े पर
हर बार तुम्हारी

भीगी नज़रें
भिगो गयीं मुझे
और मैं 

तेरे प्रेम के आगे
खुद से हार गयी