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बुधवार, 7 जनवरी 2009

मैंने उसका दिल तोड़ दिया

मैंने उसका दिल तोडा
जाने क्यूँ वो
अपना सा लगा
मगर फिर भी
उसकी कुछ बातों ने
मेरे अंतर्मन को
ठेस पहुंचाई
और न चाहते हुए भी
मैंने उसका दिल तोड़ दिया
जो नही कहना था
वो भी उसको कह दिया
ग़लत शायद वो भी न था
मगर शायद
मेरी ही शह ने उसे
वो कहने को मजबूर किया
जो मुझे सुनना पसंद नही
शायद वो मेरे अपनेपन को
अपना,अपनापन समझ बैठा
फिर उसी रौ में
न जाने क्या क्या कह गया
ख़ुद को कुछ दायरों में
बांधकर खुश रहने वाली मैं
मुझको इतना अपनापन
शायद रास न आया
और इसलिए शायद
मैंने उसका दिल तोड़ दिया
अभी हम शायद
इक दूजे को समझे नही
और इसी जल्दबाजी में
जाने क्या क्या कह गए
कुछ अनकही बातों के
अपने ही अर्थ निकाल लिए
फिर उन्हें यादों में
अपनी सजाने लगे
मगर मिलने पर
फिर एक दूसरे से
अपनी अपनी कह गए
न जानते हुए भी
कि दूसरा क्या चाहता है
शायद इसलिए
मैंने उसका दिल तोड़ दिया

3 टिप्‍पणियां:

के सी ने कहा…

बशीर बद्र साहब कहते है " अगर तलाश करू कोई तो मिल ही जायेगा , मगर तुम्हारी तरह कौन मुझको चाहेगा, कोई तुमको बहुत चाहतों से देखेगा, मगर हमारी आँखें कहाँ से लायेगा." एक और शेर देखिये " मैं ख़ुद अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ, वो अगर आया तो किस रास्ते से आयेगा."

सुशील छौक्कर ने कहा…

यथार्थ का सच बहुत ही उम्दा कहा। जिदंगियों से चुने ये मोती कहाँ से लाती है?

vijay kumar sappatti ने कहा…

zindagi ke apne rang hoten hai aur apni bhaavnaayen , kuch kahne sunne se jyada hai ki kuch samajhe ...

umda rachana ..

badhai