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बुधवार, 17 सितंबर 2008

टूटे हुए महल अरमानों का कफ़न ओढे खड़े हैं शायद अब भी किसी के इंतज़ार में । हर पत्थर खंडहर का अपनी कहानी कह रहा है , उसके चेहरे पर आंसुओं के निशान अब भी देखे जा सकते हैं। मगर उन्हें पढने वाली आँखें हैं कहाँ-----यहीं ढूंढ रहे हैं ।

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

khoobsurat hai, vandna ji
lekin ek baat samajh me nahi aye agar aabura na mane to bataye ki aapki rachnaye udasi aur dard bhari hi kyon.
Viahal

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ढूंढते रहो, मिल ही जायेगीं।
मगर जहन्नुम में।
इस जीवन में तो कभी नही।